अश्कों से जो लिखी थी वो तहरीर खो गई ख़्वाबों भरे जहान में ता'बीर खो गई अक्स-ए-जमाल-ए-यार कहीं और जा पड़ा आईना चीख़ता रहा तस्वीर खो गई राँझा था बे-क़रार मिरे दश्त-ए-ख़्वाब में रो रो के कह रहा था मिरी हीर खो गई यूँही मैं ख़ुद को क़ैदी समझता हूँ आज तक पाँव में जो पड़ी थी वो ज़ंजीर खो गई मुद्दत से लड़ रहा हूँ 'सफ़ी' अपने आप से अब हौसले के हाथ से शमशीर खो गई