दोस्त मिलते रहे मंज़िल पे गुज़र होने तक कोई साथी न रहा ख़त्म-ए-सफ़र होने तक या-इलाही मुझे तौफ़ीक़ अता कर ऐसी हर बुराई से बचूँ उम्र बसर होने तक ख़ाक होने से बचाया न किसी के घर को देखते रह गए सब नज़्र-ए-शरर होने तक गिड़गिड़ाओ कि ख़ुदा रहम पे माइल हो जाए माँगते जाओ दुआओं में असर होने तक आँख नम-नाक दम-ए-सर्द लबों पर 'नाज़ी' किस तरह सब्र करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक