दर्द जितने हैं वही बाइ'स-ए-दरमाँ होंगे चारागर तेरे न शर्मिंदा-ए-एहसाँ होंगे देखना गेसू-ए-जानाँ भी परेशाँ होंगे मौसम-ए-गुल में जो हम चाक-गरेबाँ होंगे यूँ तिरे इश्क़ में हम बे-सर-ओ-सामाँ होंगे अपनी हस्ती के तसव्वुर से गुरेज़ाँ होंगे दास्ताँ ग़ैर की रंगीन बनाने वाले देखना मेरे फ़साने के भी उनवाँ होंगे न रहेगा रह-ए-उल्फ़त में ख़ुदी का एहसास तलब-ए-हुस्न में जब बे-सर-ओ-सामाँ होंगे हसरत-ओ-यास के मारे हैं सभी तो ग़ुंचे बाग़बाँ अब न चमन में गुल-ए-ख़ंदाँ होंगे यही ग़म्ज़े यही वा'दे यही अंदाज़-ए-वफ़ा यही इक रोज़ मिरी मौत के सामाँ होंगे आज हँसते हैं जो दीवानगी-ए-दिल पे मिरी एक दिन ख़ुद भी वो अंगुश्त-ब-दंदाँ होंगे रात जो बज़्म-ए-ख़राबात में मदहोश हुए मोहतसिब हम को यक़ीं है वो मुसलमाँ होंगे शौक़-ए-तकमील-ए-जुनूँ मुझ को लिए जाता है होंगे अब ज़ेर-ए-क़दम जितने बयाबाँ होंगे फिर वही वहशत-ए-दिल जोश में आई 'असलम' फिर मिरे मूनिस-ओ-ग़म-ख़्वार परेशाँ होंगे