और कब तक ख़ूँ-फ़िशाँ मौसम का तेवर देखना आग बरसाती नज़र हाथों में ख़ंजर देखना छीन कर आँखों से बीनाई न ले जाए कहीं हर तरफ़ जलती हुई लाशों का मंज़र देखना आग जब फैली तो हमसाए का घर भी जल गया उस ने चाहा था मिरा जलता हुआ घर देखना अब कफ़-ए-अफ़्सोस क्या मलता है हम कहते न थे पाँव फैलाने से पहले अपनी चादर देखना अब तो कंकर भी गुहर के दाम में बिकने लगे कौड़ियों के मोल अब लाल-ओ-जवाहर देखना माह-ओ-अंजुम हो चुके तस्ख़ीर 'फ़रहत' अब ज़रा ज़ात के अंधे कुएँ में भी उतर कर देखना