और क्या होता भला दर्द की तश्हीर के बाद हाथ धोने ही पड़े जान से तौक़ीर के बाद कितना वीरान है दिल मेरा ज़रा देख तो ले दिल में रक्खा ही नहीं कुछ तिरी तस्वीर के बाद शे'र कहते तो रहे यार बहुत लोग मगर कोई शाइ'र न हुआ मीर तक़ी 'मीर' के बाद रक़्स करने से मुझे रोक न पाओगे कभी और पहनाओगे क्या तुम मुझे ज़ंजीर के बा'द उस का अंदाज़-ए-सितम पूछ न मुझ से ऐ तबीब उस ने ख़ंजर से भी मारा मुझे शमशीर के बाद हैसियत और ग़मों की फ़क़त इतनी है 'ज़ुहैब' छोटा लगने लगा हर ग़म ग़म-ए-शब्बीर के बा'द