अज़ल से बस यही आलम है क्या किया जाए कभी ख़ुशी है कभी ग़म है क्या किया जाए अदब से झुक के ये कहता है आसमाँ गोया ज़मीं के सामने सर ख़म है क्या किया जाए हयात-ओ-मौत की वादी का फ़ासला यारो हर एक साँस पे कुछ कम है क्या किया जाए क़रीब आ के वो मा'सूमियत से कहते हैं मरीज़-ए-इश्क़ लब-ए-दम है क्या किया जाए नशात-ओ-ऐश के लम्हे तुम्हें मुबारक हों मुझे अज़ीज़ शब-ए-ग़म है क्या किया जाए मैं अपने ढंग से जीने का क्यों हुआ आदी ज़माना इस लिए बरहम है क्या किया जाए तख़य्युलात की इन सर्द वादियों में 'सहर' रिदा-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र कम है क्या किया जाए