एक ही मज़मून के कितने हैं बाब ख़ून आँसू चीख़ वहशत इज़्तिराब इस तरह चेहरे पे है उन के नक़ाब गहन में हो जिस तरह से आफ़्ताब वो तो कहिए था मुक़द्दर का धनी वर्ना उस का वार तो था कामयाब ख़ून-ए-नाहक़ का सितम-ईजाद से वक़्त इक इक बूँद का लेगा हिसाब सर छुपाने को सहारा ढूँडिए बस्तियाँ आने को फिर हैं ज़ेर-ए-आब ज़ह्न की गहराइयों में झाँक कर देखिए आता है कैसे इंक़लाब हुस्न के दरबार में देखो 'सहर' आइना करता है किस को इंतिख़ाब