ब जज़्ब-ए-दिल ब-नाज़-ए-आगहाना जबीं है बे-नियाज़-ए-आस्ताना सलामत अपना सोज़-ए-बाग़ियाना बनेगा बिजलियों में आशियाना झुकेंगे चाँद सूरज मेरे आगे उठेगी जब निगाह-ए-ग़ाज़ियाना चमन ही के बदल दें क्यों न दस्तूर क़फ़स को क्या बनाएँ आशियाना हैं सब परछाइयाँ अज़्म-ओ-अमल की बिगड़ता है न बनता है ज़माना ख़ुदी-ओ-बे-ख़ुदी दोनों हैं धोके न हो जब तक निगाह-ए-आरिफ़ाना हक़ीक़त को ज़ियादा छानने से हक़ीक़त भी न बन जाए फ़साना ज़मीं को हम मिला देंगे फ़लक से जब उट्ठेंगे ब-ज़ो'म-ए-शाइ'राना परख लेता हूँ हर अच्छे बुरे को 'शिफ़ा' नज़रें हैं मेरी नाक़िदाना