चमन-बदोश हुए जा रहे हैं वीराने ये नक़्श कौन से उभरे हैं तेरे दीवाने हैं अक्स-ए-ऐन-हक़ीक़त दिलों के काशाने ग़ुबार से न छुपेंगे ये आइना-ख़ाने हमारा आलम-ए-बेगानगी ख़ुदा की पनाह कि रौशनी में भी अपनी न ख़ुद को पहचाने अब और कौन से गुल रह गए हैं खिलने को इलाही ख़ैर हो क्यों मुस्कुराए दीवाने रहे तसर्रुफ़-ए-बरहम-निगाही-ए-साक़ी कि चश्म-ए-यास से ढल ढल के आए पैमाने ख़ुदी-ए-हुस्न भी थी बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ भी थी कि उम्र भर वो हमें हम उन्हें न पहचाने पिया करेगा ब-मिक़दार-ए-ज़र्फ़ हर मय-कश हटाए जाएँगे अब मय-कदों से पैमाने ब-एहतिराम-ए-तजल्ली ब-क़ैद-ए-ख़ुद्दारी निगाह-ए-शम्अ' से गिर कर उठे न परवाने जो खो के रह गए उन्वान के अँधेरों में मिरी निगाह में ऐसे भी हैं कुछ अफ़्साने पहुँच सके न 'शिफ़ा' सरहद-ए-हक़ीक़त तक फ़रेब इतने दिए ए'तिबार-ए-दुनिया ने