ब-जुज़ इश्क़ के और आज़ार होता मैं अपनी निगाहों में ख़ुद ख़्वार होता मिरी राय से गर बनाता मुझे मैं न मजबूर होता न मुख़्तार होता बा-अंदाज़-ए-दीगर हमें वा'ज़ करता अगर आप वाइज़ ख़तावार होता उसे कुछ तो मज़लूम का दर्द होता सितमगार सैद-ए-सितमगार होता ग़लत-फ़हमियाँ मय के बारे में मिटतीं अगर शैख़-ए-शहर आप मय-ख़्वार होता न दौलत थी मुश्किल न शोहरत थी मुश्किल वले जीना ग़ैरत से दुश्वार होता गुनाह करता 'दीवाना' मैं छुप के डर के ख़ुद अपनी नज़र में गुनहगार होता सँवारा ख़ुदी को उसे बेच खाया ख़ुदा-दार होता तो ख़ुद्दार होता