ब-सद-ख़िराम रह-ए-ज़ीस्त पर चला जाता जो अपने सीनों से ख़ौफ़-ओ-ख़तर चला जाता मिरी अना को अगर चोट न लगी होती मैं तेरे दर पे भी बार-ए-दिगर चला जाता चहार-सू मिरे दहशत का दौर-ए-दौराँ था ज़रा जो सर को उठाता तो सर चला जाता तुम्हें तो जाने की जल्दी थी मौज-ए-फ़सल-ए-बहार ज़मीन छोड़ के कैसे शजर चला जाता