ये जो अश'आर सुने जाते हैं आसानी से लोग वाक़िफ़ ही नहीं दिल की परेशानी से जो भी इस बहर में आया वो तो फिर डूबेगा कोई बच पाया है क्या 'इश्क़ की तुग़्यानी से दीन के नाम पे क्या ज़ुल्म किए जाते हैं हम तो काफ़िर ही भले ऐसी मुसलमानी से अब किसी शय में मिरा दिल नहीं लगता 'ता’जील' रौनक़ें ख़त्म हुईं क़ल्ब की वीरानी से