चमन में चेहरा-ए-गुल पर कहाँ निखार का रंग न जाने कैसा है अब के बरस बहार का रंग वो इज़्तिराब का आलम वो इंतिशार का रंग ख़ुशा वो दिल जिसे रास आए इंतिज़ार का रंग चमन को जिस ने ख़ुद अपने लहू से सींचा है उसी से पूछिए रानाई-ए-बहार का रंग हर एक रंग यहाँ जन्नत-ए-निगाह सही मगर अज़ीज़ है मुझ को ख़याल-ए-यार का रंग हमारे दम से है क़ाएम चमन की रानाई हमारे ख़ून से मिलता है लाला-ज़ार का रंग न पूछ कैसे शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है न देख क्या है मिरी चश्म-ए-इन्तिज़ार का रंग हज़ार वा'दा-ए-मोहकम के बावजूद ऐ दोस्त मिटा मिटा सा है फिर तेरे ए'तिबार का रंग वफ़ा का ख़ून कभी राएगाँ नहीं जाता है सुर्ख़ आज भी 'जौहर' सलीब-ओ-दार का रंग