मुस्कुराने को मुस्कुराता हूँ फिर भी ग़म को कहाँ छुपाता हूँ हुस्न से रंग माँग लाता हूँ और हर नक़्श-ए-फ़न सजाता हूँ याद आता है तू मुझे हर दम क्या तुझे भी मैं याद आता हूँ शाइ'री के हसीन पर्दे में ज़िंदगी तेरे गीत गाता हूँ हुस्न को चूम कर निगाहों से हुस्न की आबरू बढ़ाता हूँ आज भी उस की याद आते ही सारी दुनिया को भूल जाता हूँ मैं ने बेची नहीं है ख़ुद्दारी मैं किसी दाम में कब आता हूँ इस सियासत के घुप अँधेरे में शम्अ'-ए-इंसानियत जलाता हूँ हर जफ़ा-जू के सामने जा कर लब-ए-गोया को आज़माता हूँ मैं तअ'स्सुब के भूले-भटकों को सीधे रास्ते पे ले के आता हूँ मुझ सा होगा न क़द्र-दान-ए-वक़्त इक भी लम्हा नहीं गँवाता हूँ इक क़दम जो बढ़ाए मेरी तरफ़ दो क़दम उस की सम्त उठाता हूँ मेरे आँसू न कोई पोंछ सका इक ज़माने को मैं हँसाता हूँ दिल-ए-आशिक़ है मेरे सीने में मैं मोहब्बत के गीत गाता हूँ वस्फ़-ओ-ख़ूबी का हूँ सताइश-गर ऐब को आइना दिखाता हूँ कभी औरों का ज़िक्र है लब पर आप-बीती कभी सुनाता हूँ कभी करता हूँ बारिश--ए-गुल-ए-तर कभी चिंगारियाँ उड़ाता हूँ बज़्म-ए-फितरत में बैठ कर 'मग़मूम' हुस्न-ए-फ़ितरत के नाज़ उठाता हूँ