बात सीधी भी हो तकरार बना लेता हूँ मैं मोहब्बत को भी असरार बना लेता हूँ पहले पहले तो मैं अपना था मगर अब ख़ुद को जैसी महफ़िल हो अदाकार बना लेता हूँ घेर रक्खा है कई दिन से हसीं यादों ने एक तस्वीर कई बार बना लेता हूँ दूर तक कोई मिरे साथ नहीं चल सकता सो बिछड़ना भी तरह-दार बना लेता हूँ मैं हवाओं पे क़नाअत नहीं करने वाला मैं तो हाथों को भी पतवार बना लेता हूँ कुछ त'अल्लुक़ है ख़द-ओ-ख़ाल की सूरत 'साबिर' कुछ त'अल्लुक़ कि मैं बेकार बना लेता हूँ