बाब-ए-दिल जब भी वा हुआ अपना उस में नुक़सान ही हुआ अपना कोई दिल वाला आ मिले मुझ से दर है रक्खा खुला हुआ अपना नक़्श-ए-पा सब्त हैं लुटेरों के घर से ग़ाएब है रहनुमा अपना लुट गया सब हिसाब क्या होगा ग़ैर का क्या था और क्या अपना मंज़िलों का निशान कहलाए ख़ून उगला है नक़्श-ए-पा अपना दिल को ताका था ऐ 'असर' मैं ने क्या निशाना हुआ ख़ता अपना