बीमार-ए-ग़म हूँ कार-ए-मसीहा करे कोई दर्द-ए-दिल-ओ-जिगर का मुदावा करे कोई ज़ौक़-ए-नज़र 'कलीम' का पैदा करे कोई फिर दीद-ए-हुस्न-ए-यार का दा'वा करे कोई मिलता नहीं वफ़ा का वफ़ा से कहीं जवाब फिर ख़ाक दोस्तों पे भरोसा करे कोई पास-ए-हया नहीं उन्हें जोश-ए-शबाब में उन की भी आरज़ू है कि देखा करे कोई देखा जो महव-ए-हुस्न तो बोले ब-सद-इताब मुझ को न इस निगाह से देखा करे कोई जब दुश्मन-ए-वफ़ा तुम्हें 'असलम' समझ चुका फिर क्यों वफ़ा की तुम से तमन्ना करे कोई