बचा कर कुछ न कुछ ईमान रखना जले हाथों में भी गुल-दान रखना कफ़न का क़र्ज़ भी लेना पड़ेगा महाजन से अभी पहचान रखना मैं इक इक शे'र को तावीज़ कर लूँ मिरे चारों तरफ़ लोबान रखना कई दीवान ग़ाएब हो चुके हैं न उर्दू-घर में तुम दरबान रखना सुलैमाँ-ज़ाद औंधे सर पड़े हैं हवाओं का न इत्मीनान रखना सवाब-ए-जाँ की ना-मुम्किन हदों में गुनाहों का भी कुछ इम्कान रखना कहीं ऐसा न हों सब डूब जाएँ 'रियाज़' अंदाज़ा-ए-तूफ़ान रखना