ज़िंदगी को मिरी महरूम-ए-दुआ रहने दे

ज़िंदगी को मिरी महरूम-ए-दुआ रहने दे
जो भी तक़दीर में लिक्खा है लिखा रहने दे

बिस्तर-ए-मर्ग पे चुप-चाप पड़ा रहने दे
ग़म के शो'लों को न दे और हवा रहने दे

प्यार का पंछी पलट आएगा कल मुमकिन है
वापसी के लिए दरवाज़ा खुला रहने दे

ख़ूब सजती है लबों पर तिरे फूलों की महक
अपने होंटों पे तबस्सुम की ज़िया रहने दे

तू अमीरों का मुसाहिब है मुबारक हो तुझे
मेरे हिस्से में ग़रीबों की दुआ रहने दे

वक़्त ने फूल से हाथों में दिया है ख़ंजर
ऐसे हालात में मत ख़्वाब सजा रहने दे

फ़स्ल इख़्लास की 'अशरफ़' न झुलस जाए कहीं
आग नफ़रत की न सीने में जला रहने दे


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