बदल चुके हैं सब अगली रिवायतों के निसाब जो थे सवाब-ओ-गुनह हो गए गुनाह-ओ-सवाब नुमू के बाब में वो बेबसी का आलम है बहार माँग रही है ख़िज़ाँ रुतों से गुलाब बदल के जाम भी हम तो रहे ख़सारे में हमारे पास लहू था तुम्हारे पास शराब मिरे कहे को अमानत समझना मौज-ए-हवा मैं आने वाले ज़मानों से कर रहा हूँ ख़िताब सो मेरी प्यास का दोनों तरफ़ इलाज नहीं उधर है एक समुंदर इधर है एक सराब ख़ुद आगही का सलीक़ा सिखा गया 'अंजुम' मिरे ख़िलाफ़ मिरे दोस्तों का इस्तिसवाब