बदलते पल में हम महरम नहीं हैं तेरे जैसे तो कम से कम नहीं हैं मनाना भी तुम्हें जी जान से है ख़फ़ा करने में भी हम कम नहीं है गुनाहों को तिरे दे दें मुआ'फ़ी ख़ुदा है वो कि देखो हम नहीं हैं लुटा कर तेरे हिस्से की मोहब्बत मेरी आँखें ज़रा भी नम नहीं हैं मुझे सीना से अपने तुम लगा लो जुदा होने के ये मौसम नहीं हैं