फ़क़त इस बात पे दिल रो गया है जो मेरा था नहीं वो खो गया है हुई हैरत मुझे इस बात की वो मिरी बाँहों में कैसे सो गया है मैं अब उस को जगाऊँ भी तो कैसे जो मुझ से लड़-झगड़ के सो गया है वो अपनी ज़िंदगी के पाप सारे समझ के मुझ को गंगा धो गया है अब इस में फल लगेंगे नफ़रतों के वो मुझ में बीज ऐसा बो गया है