बाग़ ताराज बाग़बाँ ग़ाएब शाख़ मौजूद आशियाँ ग़ाएब जिस ने सोचा था हक़ की बात करे उस के मुँह से हुई ज़बाँ ग़ाएब हौसला इन ख़ला-नवर्दों का सर से कर देगा आसमाँ ग़ाएब क्या हुआ है मुशायरों का हाल लोग हाज़िर हैं क़द्र-दाँ ग़ाएब शक्ल क्या हो गई फ़सानों की लफ़्ज़ हाज़िर हैं दास्ताँ ग़ाएब जंग शायद छिड़ी है शहरों में पीर मौजूद नौजवाँ ग़ाएब पी रहे थे जो मेरे साथ अभी यार वो हो गए कहाँ ग़ाएब मो'जिज़ा देखिए सियासत का घर सुलगते हैं और धुआँ ग़ाएब