बड़े शाद थे ज़िंदगानी से पहले मगर सच तो ये है जवानी से पहले ये कैसी घटा है कि तौबा-कशों में बरसने लगी आग पानी से पहले मुझे मुजरिम-ए-इश्क़ फ़रमाने वाले ज़रा पूछ अपनी जवानी से पहले समझता न था कोई राज़-ए-मोहब्बत मिरे आँसूओं की रवानी से पहले निगाहों ने देखा है दौर-ए-मसर्रत मगर इश्क़ की मेहरबानी से पहले उठाते न हम ज़िंदगानी की ने'मत समझते अगर ज़िंदगानी से पहले अगर रोकना था मोहब्बत से 'शाकिर' तो तकलीफ़ करते जवानी से पहले