बग़ैर ख़ूबी-ओ-ख़िदमत बशर अच्छे नहीं लगते

बग़ैर ख़ूबी-ओ-ख़िदमत बशर अच्छे नहीं लगते
न जिन में फूल फल हों वो शजर अच्छे नहीं लगते

सफ़र का लुत्फ़ घर के बाम-ओ-दर अच्छे नहीं लगते
वो जिस दिन से गए शाम-ओ-सहर अच्छे नहीं लगते

वफ़ा के रास्ते में तो सितम सहना ही पड़ते हैं
तिरे शिकवे दिल-ए-दीवाना गर अच्छे नहीं लगते

दिलों में प्यार चेहरे पर शगुफ़्ता-पन न हो जिन के
मुझे वो साहिबान-ए-रहगुज़र अच्छे नहीं लगते

ख़ुदा रक्खे मोहब्बत ने नया जादू जगाया है
उन्हें अब मेरी आँखों में गुहर अच्छे नहीं लगते

वो जिन को सुन के इक मुद्दत से टस से मस नहीं होते
मुझे वो नाला-हा-ए-बेअसर अच्छे नहीं लगते

रह-ए-ग़म पर अकेला छोड़ कर वो जब से बिछड़े हैं
मुझे उस दिन से ख़ुर्शीद-ओ-क़मर अच्छे नहीं लगते

जिन्हें दुनिया से अपना हाल तक कहना नहीं आता
हक़ीक़त में वो अच्छे हों मगर अच्छे नहीं लगते

ख़ुदा जाने मिरी क़िस्मत कहाँ से ढूँढ लाई है
कुछ ऐसे हम-सफ़र जो हम-सफ़र अच्छे नहीं लगते

मुझे 'शाकिर' यक़ीं होता नहीं अब उन के वा'दों का
अब इन फ़र्ज़ी जहाज़ों के सफ़र अच्छे नहीं लगते


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