बद-मस्त निगाहों के मस्ताने हज़ारों हैं हाथों में लिए दिल के नज़राने हज़ारों हैं उस आरिज़-ए-ताबाँ के दीवाने हज़ारों हैं एक शम्अ फ़रोज़ाँ है परवाने हज़ारों हैं कूचे से गुज़र उन के इक रोज़ हुआ होगा उस रोज़ से वाबस्ता अफ़्साने हज़ारों हैं जाने हुए गर अपने अनजाने हैं ग़म कैसा जब शहर-ए-गुलिस्ताँ में अनजाने हज़ारों हैं ये ज़िक्र-ए-मय-ए-अतहर क्या प्यास बुझाएगा पीनी है अगर वाइज़ मयख़ाने हज़ारों हैं उस बुत के तग़ाफ़ुल का क्या ख़ाक असर लेते आज़र का ज़माना है बुत-ख़ाने हज़ारों हैं हम ओक से पी लेंगे पैमाना हटा लेना 'आज़ाद' यहाँ झूटे पैमाने हज़ारों हैं