बदनामी-ए-उल्फ़त को ये आर न समझेगा इस दिल को न समझाओ ज़िन्हार न समझेगा बीमार हुआ हूँ मैं इक इश्वा-ए-पिन्हाँ से ईसा भी मिरे दिल को आज़ार न समझेगा हिर्स उस लब-ए-शीरीं की क्या दिल से मिरे कम हो परहेज़ कभू अच्छा बीमार न समझेगा ग़फ़लत को जवानी की कुछ पूछो न ऐ ज़ाहिद बे-होशी की लज़्ज़त को हुशियार न समझेगा गो राह-ए-मोहब्बत में जाती हैं चली जानें मर्द-ए-रह-ए-इश्क़ इस को दुश्वार न समझेगा मुझ से है उसे मिलना इक नंग का बाइ'स है अग़्यार के मिलने को वो आर न समझेगा समझाने दो नासेह को मत मना करो यारो जब तक न सुनेगा वो दो-चार न समझेगा हाल-ए-दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता 'नामी' ने लहू रो रो नामे में किया इंशा पर यार न समझेगा