बाग़ में आमद-ए-बहार है आज चश्म-ए-नर्गिस को इंतिज़ार है आज पा-ब-ज़ंजीर मौज ऐसे कहूँ बाग़ में सर्व-ए-जू-ए-बार है आज आएगा क्या कोई सनोबर-क़द क़ुमरियों का मगर शिकार है आज निगहत-ए-गुल हुई है मुज़्दा-रसां बाद के घोड़े पर सवार है आज वस्फ़ किस का किया था बुलबुल ने गुल जो उस के गले का हार है आज संग-बरसर-ज़नाँ ये किस के लिए कहो गुलशन में आबशार है आज ख़ंदा-ए-गुल को देख कर बुलबुल हमा-तन नाला-हा-ए-ज़ार है आज कहा बाद-ए-सबा ने ऐ नादाँ सीना-ए-दुश्मनाँ फ़िगार है आज शाह-ए-दुलदुल-सवार आता है ता फ़लक नूर का ग़ुबार है आज कहा मैं ने कि ये सुख़न तेरा मुज़्दा-ए-जान बे-क़रार है आज हब्बज़ा मर्हबा शराब-ए-तहूर साक़िया रुख़्सत-ए-ख़ुमार है आज फ़र्त-ए-शौक़-ए-जमाल-ए-यार के हाथ दामन-ए-सब्र तार-तार है आज आइए ऐ 'ज़मीर' मतलब पर याँ से मंज़ूर इख़्तिसार है आज