बहार आई तो मयख़ाने से निकले बहक निकले कि बहकाने से निकले हरम तक रौशनी ही रौशनी थी हम इस आलम में बुत-ख़ाने से निकले पिघल कर बह गई ज़ंजीर-ए-कौनैन वो शो'ले आज पैमाने से निकले निगाह-ए-मस्त ने दामन न छोड़ा निकलने को तो मयख़ाने से निकले अजब क्या है कि इस ज़ुल्मत में ऐ दोस्त सुराग़-ए-शम्अ परवाने से निकले 'रविश' अपना दिल-ए-नादाँ सलामत हज़ारों काम दीवाने से निकले