बाहर गिरफ़्त-ए-ख़्वाब से आया तो डर गया इक आइने को सामने पाया तो डर गया बिखरा हुआ पड़ा था मगर मुतमइन था मैं टुकड़ों को जब शुमार में लाया तो डर गया बे-ख़ौफ़ बढ़ रहा था सितारों की सम्त मैं उस ने सफ़र में हाथ छुड़ाया तो डर गया दिल-बस्तगी के वास्ते आया था सैर को जंगल ने अपना हाल सुनाया तो डर गया मैं तीरगी में ग़र्क़ था और मुझ में तीरगी उस ने दिया उठा के जलाया तो डर गया कूज़ा-गरी पे नाज़ था उस की बहुत मगर 'आदिल' जब उस ने चाक घुमाया तो डर गया