बहारें लुटा दीं जवानी लुटा दी तुम्हारे लिए ज़िंदगानी लुटा दी सबा ने तो बरसाए गुल फ़स्ल-ए-गुल में घटा ने मय-ए-अरग़वानी लुटा दी अदाओं पे कर दी फ़िदा सारी हस्ती निगाहों पे दुनिया-ए-फ़ानी लुटा दी अजब दौलत-ए-हुस्न पाई थी दिल ने न मानी मिरी इक न मानी लुटा दी न खोना था ग़फ़लत में अहद-ए-जवानी अजब रात थी ये सुहानी लुटा दी न की हुस्न की क़द्र ऐ माह-ए-कामिल फ़क़त रात भर में जवानी लुटा दी हसीनों ने रंगीनी-ए-ख़्वाब-ए-शीरीं सुनी जब हमारी कहानी लुटा दी अजब हौसला हम ने ग़ुंचा का देखा तबस्सुम पे सारी जवानी लुटा दी 'जलील' आप की शायरी पर किसी ने निगाहों की जादू-बयानी लुटा दी