बहुत दावे किए हैं आगही ने नहीं समझा मोहब्बत को किसी ने जबीं पर ख़ाक के ज़र्रे नहीं हैं सितारे चुन दिए हैं बंदगी ने शिकायत है उन्हें भी ज़िंदगी से जिन्हें सब कुछ दिया है ज़िंदगी ने सबा से पूछिए क्या गुल खिलाए चमन में उन की आहिस्ता-रवी ने ख़ुदा ग़ारत करे दस्त-ए-सितम को अभी तो आँख खोली थी कली ने मह ओ अंजुम को ज़ौ बख़्शी है 'मुमताज़' हमारे आँसुओं की रौशनी ने