वार भरपूर किया उस ने अना पर मेरी ख़ुद भी मग़्मूम हुआ आह-ओ-बुका पर मेरी वक़्त-ए-आख़िर भी तिरी ख़ैर ख़ुदा से माँगी ज़िंदगी ख़त्म हुई हर्फ़-ए-दुआ पर मेरी सच बता इश्क़ मुझे सख़्त परेशाँ हूँ मैं क्यूँ ख़फ़ा होता नहीं दोस्त ख़ता पर मेरी रेज़ा रेज़ा है मिरी जान तलब में जिस की उस को तश्कीक है अफ़सोस-ए-वफ़ा पर मेरी उस के हाथों की नफ़ासत पे गिराँ थी मेहंदी आ गई याद उसे रस्म-ए-हिना पर मेरी रंग ग़ालिब न सही रंज-ए-मोहब्बत ही सही ख़ुश नज़र आते हैं नक़्क़ाद नवा पर मेरी उस का इख़्लास मुसल्लम है ख़ुदा ख़ैर करे दोस्त पहुँचा नहीं 'तनवीर' सदा पर मेरी