बहुत हसीन यहाँ की फ़ज़ा लगे है मुझे दयार-ए-यार तो जन्नत-नुमा लगे है मुझे हर एक रंग में जल्वा-नुमा लगे है मुझे जमाल-ए-दोस्त जमाल-ए-ख़ुदा लगे है मुझे किसी की ज़ुल्फ़ का जिस दिन से पड़ गया साया तमाम जिस्म महकता हुआ लगे है मुझे मैं जब भी तेरे तसव्वुर में डूब जाता हूँ मिरा वजूद तिरा आइना लगे है मुझे सर-ए-नियाज़ झुकाऊँ कहाँ कहाँ आख़िर हर एक नक़्श तिरा नक़्श-ए-पा लगे है मुझे तिरे ख़याल के दामन को थाम लेता हूँ मिरा सफ़ीना जहाँ डूबता लगे है मुझे मिरे हबीब के कूचे की ख़ाक का 'नय्यर' हर एक ज़र्रा दुर-ए-बे-बहा लगे है मुझे