देखने वालों का अंजाम तुम्हें क्या मालूम आ गए तुम तो लब-ए-बाम तुम्हें क्या मालूम तुम हमें बज़्म में बे-साख़्ता देखा न करो लोग कर डालेंगे बदनाम तुम्हें क्या मालूम हम पे गुज़री जो रह-ए-इश्क़ में हम जान चुके ठोकरें खाईं हैं हर गाम तुम्हें क्या मालूम ज़ुल्फ़ बिखरा के भरी बज़्म में तुम आ तो गए क्या ग़ज़ब ढाएगी ये शाम तुम्हें क्या मालूम अपनी इन मद-भरी आँखों को झुकाओ न अभी कितने ख़ाली हैं अभी जाम तुम्हें क्या मालूम हम तो क़स्दन हुए माइल मय-ए-रुस्वाई पर हम ने क्यों पी लिया ये जाम तुम्हें क्या मालूम शायरी पर तुम्हें 'नय्यर' की तअ'ज्जुब क्यों है इस पे होता है जो इल्हाम तुम्हें क्या मालूम