ग़म गर्दिश-ए-दौराँ के भुलाए नहीं जाते अब ज़ख़्म दिल-ओ-जाँ के छुपाए नहीं जाते क्या रूह की गहराई में तुम झाँक रहे हो अब राज़ मोहब्बत के छुपाए नहीं जाते जिन राह-गुज़ारों पे तिरे नक़्श-ए-क़दम हैं वो नक़्श-ए-क़दम हम से मिटाए नहीं जाते ज़ुल्मत के मनाज़िर से रिहा हो गईं नज़रें ज़ेहनों से मगर ख़ौफ़ के साए नहीं जाते मैं कैसे तिलावत करूँ आयात वफ़ा की क्यों ताज-महल आज बनाए नहीं जाते 'गुलनार' हर इक शे'र से ज़ाहिर है तिरा ग़म अशआ'र कभी यूँही सुनाए नहीं जाते