बहुत ख़जिल हैं कि हम राएगाँ भी ज़िंदा रहे जहाँ पे तू भी नहीं था वहाँ भी ज़िंदा रहे अजीब शर्त है इस बे-यक़ीं मिज़ाज की भी कि तू भी पास हो तेरा गुमाँ भी ज़िंदा रहे तुझे पे ज़िद है मगर इस तरह नहीं होता कि तू भी ज़िंदा रहे दास्ताँ भी ज़िंदा रहे वो कौन लोग थे जिन का वजूद जिस्म से था ये कौन हैं जो पस-ए-जिस्म-ओ-जाँ भी ज़िंदा रहे जो ये न हो तो सुख़न का कोई जवाज़ नहीं ज़मीर ज़िंदा रहे तो ज़बाँ भी ज़िंदा रहे ये काएनात फ़क़त मंफ़अत का नाम नहीं कोई यहाँ पे बराए ज़ियाँ भी ज़िंदा रहे अदम में जो भी नहीं था वो सब वजूद में था ये हम ही थे जो कहीं दरमियाँ भी ज़िंदा रहे