जो लिखना चाहा न लिख पाया मैं ख़ुदा अफ़्सोस सो रह गया मिरी तहरीर में ख़ला अफ़्सोस हर एक ख़्वाब को अश्कों से धार कर मैं ने जो देखा दिल तो दिखा जा-ब-जा पड़ा अफ़्सोस बिसात-ए-जाँ में रहा रक़्स ख़्वाहिशों का मगर छलक के आँखों से अश्कों ने कह दिया अफ़्सोस अजब नहीं है तू क्या है कोई बताए मुझे यहाँ पे जो भी मिला मिल के ये कहा अफ़्सोस मैं अपने हाथों से बन बन के रेत जब निकला तो मेरा साया भी कहते हुए चला अफ़्सोस उठा के लाई जो तक़दीर आइने के हुज़ूर तो दर्ज चेहरे पे और आइने में था अफ़्सोस जो अक्स मैं ने उभारा था दिल के काग़ज़ पर क़दम क़दम पे नदामत वही बना अफ़्सोस मैं ख़्वाहिशों के जनाज़े को पढ़ के घर आया किसी के चेहरे पे ख़ुशियाँ किसी के था अफ़्सोस वो एक मौज-ए-'नसीमी' थी वहशत-ए-दिल की किसी के हिज्र में जिस को बहा दिया अफ़्सोस लिखा हुआ था मुक़द्दर में पी गया खुल कर तो कैसे कह दूँ के पी कर मुझे हुआ अफ़्सोस