बहुत क़रीब है दिल के मगर नहीं मिलती हमें पसंद है जो शय इधर नहीं मिलती चमन में फूल में गुलशन में हर नज़ारे में तलाश उस को मैं करता हूँ पर नहीं मिलती वो देखो आया है क़ासिद भी बाद मुद्दत के ख़बर ये लाया कि कोई ख़बर नहीं मिलती न जाने कितनी ही राहें तलाश कर बैठे तुम्हारे इश्क़ की कोई डगर नहीं मिलती फ़रेबी-राह पे चल कर न ढूँड मंज़िल को जो मिल भी जाए अगर मो'तबर नहीं मिलती ग़म-ए-फ़िराक़ की ग़ुर्बत से बे-ख़बर रहते हमें ये इश्क़ की दौलत अगर नहीं मिलती मैं सोचता हूँ ग़नीमत थी ज़िंदगी अपनी ऐ काश उन से हमारी नज़र नहीं मिलती अँधेरी रात को उस की तू बे-सबब ना समझ सहर के बाद ज़िया-ए-क़मर नहीं मिलती