दिल को तेरा गुमाँ सा होता है एक जज़्बा जवाँ सा होता है शब की तन्हाइयों में आँखों से एक दरिया रवाँ सा होता है दर्द का आफ़्ताब ढलने पर आसमाँ ख़ूँ-चकाँ सा होता है तू नहीं है प तेरा ग़म मेरा आदतन हम-ज़बाँ सा होता है तेरी परछाइयाँ उभरती हैं आँख में जब धुआँ सा होता है नींद आती है दश्त में उस दम इश्क़ जब साएबाँ सा होता है तू तो 'अमृत' है फिर भी मौत के वक़्त क्यूँ भला राएगाँ सा होता है