बहुत राज़ हैं ज़िंदगी से भी आगे मक़ाम और नहीं दोस्ती से भी आगे मरें तो मिलें ज़िंदगी के इशारे मगर मौत फिर ज़िंदगी से भी आगे बहुत दूर तक दब चले रौशनी में अंधेरे मिले रौशनी से भी आगे न अपना पता है न उन की ख़बर है कहाँ आ गए बे-ख़ुदी से भी आगे न एहसास-ए-मालिक न एहसास-ए-ख़िदमत मक़ाम आ गया बंदगी से भी आगे नज़र जम गई रू-ए-ताबाँ पे आख़िर है कुछ और नज़्ज़ारगी से भी आगे इबादत के लाखों तरीक़े हैं लेकिन हुआ ने कोई ज़िंदगी से भी आगे कोई देवता हो कोई हो फ़रिश्ता चला ने कोई आदमी से भी आगे हुआ साफ़ दिल तो ये आवाज़ आई गया 'शौक़' अब रास्ती से भी आगे ग़म-ए-ज़िंदगी में सुकूँ मिल गया है निकल आए दिल की लगी से भी आगे