बैठे हैं गुल्सितान में हिम्मत को हार के उन से सुलझ सकेंगे न गेसू बहार के वारफ़्तगी-ए-शौक़ का आलम तो देखिए बैठा हुआ हूँ बज़्म-ए-तमन्ना सँवार के रग रग में मौजज़न है मिरी कैफ़-ए-इज़्तिराब ओ याद आने वाले शब-ए-इंतिज़ार के नैरंगी-ए-जुनूँ के करिश्मे तो देखिए सामान हो रहे हैं क़फ़स में बहार के आग़ोश-ए-इंक़लाब में पलती रही हयात एहसान हैं ये गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार के अहल-ए-चमन चमन की फ़ज़ाओं से होशियार पहरे जगह जगह पे हैं बर्क़-ओ-शरार के तंज़ीम-ए-हादसात का नक़्शा बदल दिया नज़्म-ए-जहाँ की ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ सँवार के ग़फ़लत-शिआ'र-ए-वक़्त न बेदार हो सके ख़ामोश हो गया है ज़माना पुकार के बढ़ता है ग़म की सम्त मसर्रत से ऐ 'कमाल' अल्लह रे हौसले दिल-ए-उम्मीद-वार के