बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले हिसाब होता रहेगा यारब हमें मँगा दे शराब पहले फ़ज़ा-ए-शब हँस के जगमगाई वो नाज़नीं सुब्ह बन के आई हुआ है रौशन मिरे शबिस्ताँ में चाँद से आफ़्ताब पहले ज़बाँ पे आया न हर्फ़-ए-मतलब कि कह गईं कुछ शरीर नज़रें सवाल करने न पाए हैं हम कि मिल गया है जवाब पहले जिनाँ में पहले-पहल पिएगा तो लड़खड़ाता फिरेगा ज़ाहिद सुरूर-ए-कौसर की है अगर धन जहाँ में पी ले शराब पहले है ख़ुसरव-ए-इश्क़ का ये फ़रमाँ कि दिल लगाना नहीं है आसाँ जिसे हो कू-ए-बुताँ का अरमाँ वो कू-ब-कू हो ख़राब पहले ग़म-ओ-अलम रंज-ओ-यास-ओ-हसरत उठाऊँगा सब के रुख़ से पर्दे तुम्हें क़सम है दिल हज़ीं की उठाओ तो तुम नक़ाब पहले इलाही वो बू-ए-पैरहन से भी पहले हो हम-कनार आ कर चमन में होता है जल्वा-अफ़रोज़ फूल से माहताब पहले ये किस के रंग-ए-रुख़-ए-बहारीं ने बख़्श दी है तरावत-ए-नौ शगुफ़्ता होता न था गुलिस्ताँ में उस अदा से गुलाब पहले निगाह-ए-साक़ी की मुस्कुराई कहा जब 'अख़्तर' ने अपनी धन में पिएँगे पीते रहेंगे मय-कश मगर ये ख़ाना-ख़राब पहले