बानी-ए-बे-दाद भी तुम तुम सितम-ईजाद भी सब गवारा है अगर सुन लो मिरी फ़रियाद भी इस क़दर बढ़ता चला जाता है दिल का इज़्तिराब बाइस-ए-राहत नहीं है अब तुम्हारी याद भी और होंगे जिन को शिकवा है तिरी बेदाद का हम वो हैं जिन को ग़नीमत है तिरी बेदाद भी हुस्न-ए-सीरत ही इक ऐसा हुस्न इस दुनिया में है देख सकता है जिसे हर कोर-ए-मादर-ज़ाद भी इक वो आँसू जो सर-ए-मिज़्गाँ निकल कर आ गया 'इश्क़ की तफ़्सीर भी है हुस्न की रूदाद भी मैं ने दोनों से निबाही इस तरह हंस-बोल कर बाग़बाँ भी याद करता है मुझे सय्याद भी मिट चुकी थी एक मुद्दत से तुम्हारी आरज़ू रफ़्ता रफ़्ता मिट रही है अब तुम्हारी याद भी हम ने इस ख़ूबी से लिक्खा है फ़साना 'इश्क़ का लोग कहते हैं इसी को हुस्न की रूदाद भी इक फ़क़त दाने की ख़ातिर कौन होता है असीर हम को था कुछ एहतिराम-ए-कोशिश-ए-सय्याद भी तेरी ख़ातिर ये भी 'साहिर' ने गवारा कर लिया वर्ना होता है ख़ुशी से क्या कोई बर्बाद भी