छोड़ दे ऐ दिल मोहब्बत का ख़याल अच्छा नहीं काम अच्छा है मगर इस का मआल अच्छा नहीं उन से जो कहना है ऐ दिल कह समझ कर सोच कर ये भी कुछ कहने में कहना है कि हाल अच्छा नहीं ऐ दिल-ए-बर्बाद अब हम से गिला बे-सूद है हम तो कहते थे मोहब्बत का मआल अच्छा नहीं हँस रहा हूँ इस लिए अपने दिल-ए-बर्बाद पर एक मोहसिन की इनायत पर मलाल अच्छा नहीं दूर दूर उन से रहे हम ख़ुद ग़ुरूर-ए-इश्क़ में कौन अब उन से कहे जा कर कि हाल अच्छा नहीं दिल की ख़ातिर ही किया था तर्क-ए-उल्फ़त का ख़याल दिल ही अब कहता है मुझ से ये ख़याल अच्छा नहीं अब्र भी मेरी तरह रोता ही रहता है मुदाम उस के भी तालेअ' में शायद कोई साल अच्छा नहीं है तलब तुझ को तो फिर हुस्न-ए-तलब से काम ले लब पे आ जाए अगर हर्फ़-ए-सवाल अच्छा नहीं क्या कहूँ 'साहिर' कि अब कैसा ज़माना आ गया दुश्मनी क्या दोस्ती का भी मआल अच्छा नहीं