बस आफ़्ताब की तनवीर जैसा लगता है किताबी चेहरा है तस्वीर जैसा लगता है कोई भी देखे तो मबहूत हो के रह जाए वो रुख़ तो हुस्न की तफ़्सीर जैसा लगता है किसी भी काम का वो मुझ को छोड़ता ही नहीं ख़याल भी तिरा ज़ंजीर जैसा लगता है लकीर लम्बी सी काजल की जिस में होती है वो गोशा आँख का शमशीर जैसा लगता है तुम्हारे कूचे के मालूम हैं नशेब-ओ-फ़राज़ मुझे वो अपनी ही जागीर जैसा लगता है अजब कशिश है तिरे शहर में मुझे जानाँ कोई भी रुत हो वो कश्मीर जैसा लगता है वो चेहरा ऐसा है आँखें ठहर ही जाती हैं कि इक हसीन सी तहरीर जैसा लगता है शब-ए-फ़िराक़ शब-ए-वस्ल में बदल जाना वो मेरे ख़्वाब की ता'बीर जैसा लगता है निगाह उठते ही दीदार तेरा हो जाना मिरी दुआओं की तासीर जैसा लगता है तिरा ख़याल ही मरहम है सारे ज़ख़्मों का कोई भी ज़ख़्म हो इक्सीर जैसा लगता है कोई निशाँ है न मंज़िल का है पता 'अनवर' ये रास्ता भी तो तक़दीर जैसा लगता है