बस अदब की इसी दस्तार से पहचाना जाऊँ ऐ ग़ज़ल मैं तिरे मेआ'र से पहचाना जाऊँ दौलत-ए-नाम-ओ-नसब मुझ को भी हासिल है मगर चाहता हूँ कि मैं किरदार से पहचाना जाऊँ मेरी क़ीमत भी कोई आ के लगाए इक रोज़ और मैं गर्मी-ए-बाज़ार से पहचाना जाऊँ मुझ से तूफ़ान उलझने की जसारत न करें मैं अगर अज़्म की पतवार से पहचाना जाऊँ ज़ुल्म के हाथ पे बैअ'त का तसव्वुर हो तो मैं सब्र और जुरअत-ए-इंकार से पहचाना जाऊँ मेरी दुनिया मुझे समझे कि मैं क्या हूँ 'वासिफ़' जिस में हूँ मैं उसी संसार से पहचाना जाऊँ