बस गया जब से आ के तू मुझ में एक ख़ुशबू है चार सू मुझ में आइना देख के मैं चौंक पड़ा कोई मुझ सा है हू-बहू मुझ में ख़ुद में ख़ुद को कहाँ तलाश करूँ बस तू ही तू है चार-सू मुझ में ख़ुद को ताराज कर के बैठा है एक वहशी लहू लहू मुझ में हो के ख़ामोश उस को सुनता हूँ है कोई महव-ए-गुफ़्तुगू मुझ में सच कहूँ आज तक भी ज़िंदा है तुझ को पाने की आरज़ू मुझ में