बस कि इक दर-ब-दरी रहती है ख़ुद से ही दौड़ लगी रहती है मुंजमिद हम को न जानो साहब अंदर इक आग लगी रहती है कुछ तबीअ'त ही मिली है ऐसी साथ इक ग़म-ज़दगी रहती है बुरे आसार की सर पर गोया कोई तलवार तनी रहती है कोई मौसम हो मिरे पर्बत पर साल भर बर्फ़ जमी रहती है दो किनारों की तरह हैं दोनों दरमियाँ एक नदी रहती है