बेकसी का आलम है आजिज़ी का मौसम है तुम बदल गए हम पर जाँ-कनी का मौसम है हाथ उठाए शाख़ों ने सर-निगूँ हैं गुल ग़ुंचे सुरमई ये नूरी सुब्ह बंदगी का मौसम है बादलों की चादर सी ओढ़ ली दरख़्तों ने कुछ घड़ी को आ जाओ शायरी का मौसम है गुनगुनाते ताइर भी नौहा-ख़्वाँ से लगते हैं सोगवार सा ही कुछ आज जी का मौसम है